सुनो पते की बात बताऊँ
मुखड़ा-
सुनो पते की बात बताऊँ,कान खोलकर तुम सुनना,
खून पसीना एक करो जी,व्यर्थ नहीं माथा धुनना !
सुनो पते की बात बताऊँ,कान खोलकर तुम सुनना,
खून पसीना एक करो जी,व्यर्थ नहीं माथा धुनना!
अंतरा-हाथ कभी ना भूले मलना,
हाथ पैर भी तुम मारो,
हाथ कभी ना भूले मलना,
हाथ पैर भी तुम मारो,
किला हवाई नहीं बनाओ,मार्ग परिश्रम का चुनना,
टेक- खून पसीना एक करो जी,व्यर्थ नहीं माथा धुनना!
सुनो पते की बात बताऊँ,कान खोलकर तुम सुनना,
खून पसीना एक करो जी,व्यर्थ नहीं माथा धुनना।
दूसरा अंतरा-
ना हथियार कभी भी डालो, तुम दिन-रात एक करना,
सरल बहुत ये मार्ग नहीं है ,धीर अभी थोड़ी धरना,
ना हथियार कभी भी डालो,तुम दिन-रात एक करना,
सरल बहुत ये मार्ग नहीं है,धीर अभी थोड़ा धरना,
ख्याली पुलाव नहीं पकाओ,सपने सच्चे ही बुनना,
खून पसीना एक करो जी,व्यर्थ नहीं माथा धुनना।
सुनो पते की बात बताऊँ,कान खोलकर तुम सुनना,
खून पसीना एक करो जी,व्यर्थ नहीं माथा धुनना।
भारत भूषण पाठक”देवांश” ???