सुनो झूठ ! सच विश्व विजेता होगा।
झूठ है की बहुत इतराता है ,
सच के सामने बहुत ऐंठता है ।
हार गया सच झूठ के समक्ष ,
इसी अभिमान में अकड़ता फिरता है ।
दबा दिया सच को मैने ,मिटा दिया उसे ,
इसी खुशी में फूला न वोह समाता है।
परंतु इसे नहीं मालूम ,
सच कितनी देर छुपा रह सकता है !
चीर कर काली घटाओं को ,
सूरज तो फिर भी चमकता है ।है ना !
सच भी मरा नहीं ,घायल जरूर हुआ है ,
परंतु जल्दी ही उठ खड़ा होगा ।
और एक दिन झूठ के आगे प्रकट होगा,
और भी अधिक शक्तिशाली और विकराल रूप ,
धारण करते हुए।
तब झूठ का अभिमान चूर चूर होगा,
और हाथ जोड़ेगा ,पांव पकड़ेगा गिड़गिड़ाता हुआ ।
तब झूठ की निश्चय हार होगी ,
और सच विश्व विजेता होगा ।