सुनो जीतू,
सुनो जीतू,
आज मेरी पंक्तियाँ जवान हो गई है
कुछ थी मेरी जो वीरान हो गई है
अब मुझे भी इनके ब्याह की चिंता हो रही
पिता हूँ न इनका, मायुसी होना जाहिर है
ब्याह करना है, तो कर्जा भी लेना है साहुकार से
जमीन भी अल्प है मेरे अक्षरों की
क्या कीमत है मेरे विचारों की
अल्फ़ाज़ लेंगे मुझे दहेज देना है
मैं ठहरा कवि प्रिय,कविता ही मेरा गहना है
सच कहूं तो मेरी पंक्तियाँ अब आवाम हो गई
मेरी नन्हीं-नन्हीं पंक्तियाँ आज जवान हो गई
कवि ~ सरकार