सुनो ऐ मुरारी…..
संकट के दिन हैं विपदा है भारी
कहाँ हो कहाँ हो सुनो ऐ मुरारी।
मुँह ढक के निकलें ये कैसी हवा है
यह मर्ज कैसा न जिसकी दवा है
तुम्ही अब बता दो ये क्या हो रहा है
बनाया जिसे तुमने क्यों रो रहा है
दुःख का है बादल घटा कारी-कारी
कहाँ हो कहाँ हो सुनो ऐ मुरारी।
कब तक चलेगा ये लुक छुप के रहना
ना जाने अभी दर्द कितना है सहना
हम पर सितम अब बहुत हो चुका है
समय था जहाँ पर वहीं पर रुका है
बहुत हो चुकी अब परीक्षा हमारी
कहाँ हो कहाँ हो सुनो ऐ मुरारी।
है दहशत में दुनिया सभी डर रहे हैं
जतन जितना भी है सभी कर रहे हैं
ना जाने कहाँ तक ये फैला जहर है
कलियुग का सबसे बड़ा ये कहर है
उठा लो सुदर्शन हरो कष्ट भारी
कहाँ हो कहाँ हो सुनो ऐ मुरारी।
संकट के दिन हैं विपदा है भारी
कहाँ हो कहाँ हो सुनो ऐ मुरारी।
दीपक “दीप” श्रीवास्तव