सुनिए !!!
सुनिए!!!!!!!
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सुनिए!!!!!
मेरी कहानी,
एक बार फिर……………
चिर अतीत से, आज तक
पहला कदम आपका था,
जो मेरी ओर बढ़ा……
मैं तो सृष्टि हूं!!!!!
मगन थी सृजन में!!
कलियों, फूलों-तितलियों में….
जल की कल-कल,
पंछियों के कलरव में………
बात करती, जीव-जगत
वनस्पति और खुद से!!!!
शायद!!!!
दृष्टा रूप में
सहन नहीं हुआ आपसे….
मेरा, स्वतंत्रत और सुगंधित
विचरण.…………
तभी तो छला मुझे,
प्रेम से,वासना से
ताकि आपको नव- जीवनदान मिले,
मेरी कोख में आकर………
कहते रहे !!!! पीछे रहो !!!
सुकोमल हो!!!
यह नहीं कहा कि
मेरी जरूरत हो,मेरी पूर्ती हो!!!!!????
कोख में लिए घूमती रही,
असह्य प्रसव-पीड़ा सही,
गोद में लिए,दुलराती रही,
अपना अमृत पिलाती रही,
आंचल में छुपाती रही,
मगर!!!!!!!!!!
जब पर निकले
कहने लगे
दायरे में रहो !!!!!!
मैं हूं ना बाहर के लिए!!!!
भूल गये?????
मेरे प्रेम की ताव,
मेरे दूध की मिठास!!!!
सदियां निकल गई
आप नहीं बदले!!!!!
नहीं समझ पाए मुझे,
कि क्या हूं????!!!
कौन हूं, कैसी हूं????!!!
शायद!!!
समझने मात्र से
आपका अस्तित्व ही,
हल्का और कमतर हो जाता ……..
आपका अहम् टूट जाता…….
आपकी अकड़ ढीली पड़ जाती…….
और हां!!!!!बरसों का नहीं???
सदियों का हर भ्रम
टूट जाता-और
आपको यह स्वीकार नहीं!!!
कतई स्वीकार नहीं!!!!!
इसीलिए तो,हर तरह का,
ढोंग-मेरे साथ रचा जाता है
मेरे चारोंओर, जाला बुना जाता है
कि अगर मैं निकलना चाहूं भी,
तो उलझती जाऊं!!!!!!??????
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विमला महरिया मौज