सुना है आपको ही ताजमहल कहते हैं
आपके खिलते हुए इस संजीदा चहरे को खुबसूरत कमल कहते हैं
सौंदर्य की जीती जागती सूरत आपको एक ताजमहल कहते हैं
आपके रुप को यहां शायर का इतराता हुआ ही गज़ल कहते हैं
आपकी हर अदा में भरी हुई नरमी को बहुत ही कोमल कहते हैं
आपको देखकर दिलों में पैदा हो जाये उसे उथल-पुथल कहते हैं
सांसों में अजीब सी हरकत इसे धड़कन की हलचल कहते हैं
आपकी आंखों से हो और चढ़ जाये नशा इसे हलाहल कहते हैं
और तमन्ना फिर बदल जाये आपको देखकर वो असल कहते हैं
किसी को भी अपना बना ले ये हुनर आप इतना सरल कहते हैं
रखना है दिल को आपके पास आपको दिलों का महल कहते हैं
मेरा दिल मेरे पास अब रहता नहीं ये सभी आजकल कहते हैं
लिखाता हूं जो कलम से तो लोग मुझे आपका कायल कहते हैं
हलाहल-शराब
असल-शहद,मधु
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन की अलख
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर,छ.ग.