दिल बचपन
*आज काश सबकी न सुनके,
सिर्फ मेरे दिल की सुन पाऊँ ।।
हक़ीक़त मे मै क्या हूँ ‘
आज यह आईने में देख पाऊँ ।।
बहुत रोज हो गए खुद से मिले हुए
आज खुद के घर भी तो जाऊँ ।
एक जमाना भर सा हो गया है सिर्फ ताने सुनते हैं ।।
आज जा के मै भी माँ की गौद में सो जाऊ।।
आज जा के मा की गौद मे सौ जाऊ।।
मुझे याद हैं वो माँ चक्की पीसती हुई मुझे सुलाती थी।
वो बिजली जाने पर नींद न टूटे झट पंखा ले आती थी।
वो हमारे साथ बैठ गुड धानी खाती थी
दो मील दो पानी के घड़ो के साथ मुझे गौद मे लाती थी।
अब तो लगता हैं की काश समय रूक जाता और मैं सब भूल जाउँ ।
काश मैं फिर से बच्चा हो जाऊ।।
काश मै फिर से बच्चा हो जाऊ
।।*