सुनाई देती है
चाहे भीतर कितनी ही कौतूहल हो
चाहे खड़े सवालों का मिले न कोई हल हो,
नदी के तट पर जब पानी की कल-कल सुनता हूँ
उस स्वच्छंद पानी में तेरी धड़कन सुनाई देती है।
ऊँची पहाड़ी के पीछे डूबते सूरज के साथ
घिरते अंधकार और सिमटते लालिमे के साथ,
लौटते हुए घर को पंछी जब ज़ोरों से करलव करते हैं
उन सुरीले करलव में तेरी गीत सुनाई देती है।
उठती हैं जब लहरें तट को छूने की कोशिश में
झुकता जाता है आसमान धरती को छूने की कोशिश में,
उल्टे लेटे जब तट पर कोई संगीत सुनाई देती है
उस पश्चिमी संगीत में तेरी प्रीत सुनाई देती है।।।