सुनहरे पल
कुछ बीते हुए लम्हे पास आ जाते हैं ।
जब हमें कुछ अपने याद आते हैं।
कुछ मीठी मीठी बातें, कुछ गिले शिक़वों का सिलसिला ।
कुछ उनका रूठना फिर खुद रूठ कर उनका मनाना फिर मान जाने का सिलसिला।
फिर वही हँसी खुशी किस्से कहानी सुनना और सुनाना।
लगता है यह दूरी हमें और पास लाती है ।
जब हमें उनकी बार-बार याद आती है।
वो दरख्तों पर चढ़ना झूला झूलना।
परिंदों को पत्थर से निशाना बना कर उन्हें तंग करना।
चौकीदार की लाठी छुपा कर उसे परेशान कर मज़ा लूटना।
दौड़ने की बाजी लगाकर दौड़कर पुलिया पार करना। फिर जीत हार का जश्न मनाकर गले लगाना।
चौधरी की बगिया के अमरुद चोरी करना ।
और पकड़े जाने पर मान मुन्नव़ल करना।
स्कूल से भाग कर गांव की पोखर में डुबकी लगाना।
फिर गीले कपड़ों में घर पहुंचकर दादी की डाँट खाना ।
कभी कभार स्कूल में शैतानी करने पर म़ुर्गा बनना। और दोस्तों का हमको चिढ़ाकर ठिठोली करना।
सब ऐसे लगता है जैसे कल ही गुजरा हो।
वक्त का पहिया लगता है पीछे घूम गया हो ।
फिर जब गुजरे वक्त की खुमारी टूटती है तो अपने आप को आज के माहौल में पाता हूँ।
फिर हाज़िर हालातों से समझौता करता जाता हू्ँ।