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17 May 2021 · 1 min read

सुनहरी मंज़िल

चलो जुगनुओं की रौशनी में ही चलें
मगर चलते हैं
यूँ बैठे रहने से अच्छा है
मंज़िल की तरफ एक कदम का फासला कम करते हैं ,
सुना है बड़ी सुनहरी सी मंज़िल है
चलो कुछ कांच तो कुछ पत्थरों
की राह से चलते हैं ,
हौसला और मेहनत की नीयत बांध के चलते हैं
फिर देखते हैं की वो सुबह कैसी होती है
जिसकी आस में सियाह रातों से हो कर गुज़रे हैं
चलो जुगनुओं की रौशनी में ही चलें
मगर चलते हैं |

द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’

Language: Hindi
1 Like · 282 Views
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