सुनहरी धरा
स्वच्छ शीतल निर्मल सी यह धरा
कण-कण चमके स्वर्ण सा ऐसा रूप सुनहरा
सूर्य करता श्रृंगार लालिमा बिखेरकर
पीली चुनर ओढ़े सिंदूरी रंग मस्तक पर सजे
सीपी से मोती की माला पहने
पर्वत जिसके आगे शीश नवाते
मयूर मनमोहक नृत्य से शोभा बढ़ाते
ऐसी पावन धरा पर सब हर्षाते
वर्णन जिसका शब्दों में ना हो सके बयां
ऐसी पावन धरा मरूधरा
पवन संग हिलोरें ले कर उड़ती
निज स्वतन्त्रता का संदेश देती
पल भर में नया सार बताती
सदैव तत्पर रहने का पाढ पढ़ाती
मुठ्ठी भर बांध लेने पर बिखर जाती
मानो कहती बांधों ना अरमानों को
पंख लगें इन परवानों को
आशा ओर निराशा के घेरे से बाहर निकल
राह बना नवरंग भर जीवन में
आगे बढ़ने का संदेश देती
सन्ध्या समय शीतल हो जाती
कुछ क्षण अपने पास बिठाती
दिन भर की थकान पल में छू हो जाती
रात्रि में चांदनी जिस पर रस बरसाती
ऐसी पावन धरा मरूधरा कहलाती