सुनने वाले
जब मेरी पहली किलकारी लगी
उस पुराने पड़े रेल के डिब्बे में
मैं जानता हूं आसपास सुन रहे थे सब
जब बचपन में दो कदम रखे
फैलाए रोटी के लिए दो हाथ
मैं जानता हूं आस पास सुन रहे थे सब
जब भूख से तड़प कर मैले-कुचैले कपड़ों में
मैंने उठाई रोटियां एक रैहड़ी से
मार मिली मुझे बदले भूख के
मैं जानता हूं आसपास सुन रहे थे सब
अपनी हवस मिटा कर फैंक
लात मार दुत्कार दिया मुझे
मैं जानता हूँ आस पास सुन रहे थे सब
सहन नहीं कर सका मैं तड़प पेट की
तो छीन लेना सीख लिया
पल भर ना मैं सुकूं के जिया
तब भी आस पास सुन रहे थे सब
यूं ही जवानी आ गई
छीन कर खाने में तब एक दिन
पुलिस ने पकड़ लिया
वो दिन था जब ये
आसपास सुनने वाले कह रहे थे
कि चोर है ये चोर है ये चोर है
काश!!!!
ये सुनने वाले
उस दिन इस बच्चे को सँभाल लेते
जब किलकारी लगी थी
रेल के पुराने डिब्बे में
प्रवीण माटी