शिक्षा में सुधार हेतु योजनाओं पर नहीं अपितु वास्तविकता पर ध्यान दें
आज और पन्द्रह से बीस वर्ष पहले के समय पर ध्यान दें तो शिक्षा में जहाँ एक ओर सुविधाओं और संसाधनों में चकित कर देने वाला सुधार हुआ है वहीं शिक्षा में गुणवत्ता के नाम पर एक मज़ाक बना हुआ है । स्कूलों के माहौल की बात करें तो पूरा दिन सभी मे नकारात्मक तत्व ऐसे घूमता रहेगा कि बस पूछिये मत । अब आप ही सोचे कि जो अध्यापक सुबह नकारात्मक रूप में सिस्टम को कोसते हुए जीवन से थका हारा स्कूल में प्रवेश करेगा तो क्या उनके अंदाज़ से बच्चे प्रभावित होंगे बिल्कुल भी नहीं कभी सिस्टम पर दोष तो कभी सरकार पर तो कभी विभाग पर । आज से 20 से 25 साल पहले क्या स्कूलों में स्टाफ की , संसाधनों की , सुविधाओं की कमी नहीं थी क्या बिल्कुल बहुत ही अधिक थी लेकिन उस समय अध्यापक अपनी अध्यापन कला के मामले में दबंग थे । ज़रा पूछिये उन अध्यापकों से जो सिस्टम को कोसते हैं उन्होंने अपने स्तर पर क्या क्या सुधार किया जवाब में मुँह लटका मिलेगा । यह नियम सरकारी एवम निजी विद्यालयों दोनों पर लागू होता दिखाई दे रहा है । कुछ टॉप के निजी विद्यालय हैं जहाँ बच्चों को कांट छांट कर लिया जाता है वहां वैसे ही उन्हें रोबोट जैसी मशीन बना दिया जाता हैं जिनमें ज्ञान डेटा की तरह फीड किया हुआ है लेकिन वे व्यवहारिक बिल्कुल भी नहीं । बच्चों के परिजन भी अपने बच्चों को नकारा निठल्ला कह कर उनका नैतिक पतन करते हैं परिणाम आपके सामने है । जो कसर बची थी वो मोबाइल फेसबुक व्हाट्स एप्प ने पूरी कर दी । फेसबुक के बच्चे तो शिकार हैं ही अध्यापक उनके भी उस्ताद हैं हर दिन 8 से 10 पोस्ट करेंगे अब आप हिसाब लगाएं यदि इनका 3 से 4 घण्टे का समय इस पर जाए तो परिवार डिस्टर्ब होगा ही जिसके कारण परिवार का डिप्रेशन का सीधा असर स्कूल में बच्चों पर दिखेगा । उनसे गुजारिश है इस टूल का उपयोग ज्ञान वर्धन के रूप में करें न कि इसे लत बनाएं। साथ 12 वी तक बच्चे मोबाइल से परहेज करें तो अत्यंत ही अच्छा है एकाग्रता के मामले में भी एवम रेडिएशन से दिमागी सुरक्षा के मामले में भी । अध्यापक लोग भी इस बहुमूल्य समय को अपने स्कूल के स्तर को उठाने के बारे रचनात्मक सोचने में लगाएं तो परिणाम बेहतर होंगे और अगला उपाय यह है कि अध्यापकों के निरन्तर सकारात्मक एवम ऊर्जावान बने रहने हेतु एवम उनके मानसिक स्तर की जांच हेतु उन्हें मोटिवेशनल प्रशिक्षण की हर माह आवश्यकता है यह ब्लॉक स्तर पर किया जाना चाहिए या क्लसचर स्तर पर और साथ में हर 3 माह बाद अभिभावकों से सम्पर्क साधकर उन्हें भी मोटिवेशनल प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए जिससे वे बच्चों से सहयोगी रूप में सकारात्मक एवम मित्रता पूर्ण व्यवहार करें । बच्चों की भी दूसरे अध्यापकों को अतिथि के रूप में बुलाकर नैतिकता को बढ़ाना चाहिए । जब तक सोच नहीं उठेगी परिणाम नहीं आएंगे । कई विद्यालयों में मान लीजिये 5 अध्यापक जोशीले हैं और 45 नकारात्मक । अब बताएं क्या उन 45 को उन 5 का कार्य करना सकारात्मक अनुभव होगा बिल्कुल भी नहीं । वे अपने राजनैतिक रूपी प्रयासों से उनके रचनात्मक कार्यों को विफल इसीलिए करेंगे कि वे तो जीरो हो जाएंगे और उनके लिए भी भविष्य में रचनात्मक होना पड़ सकता है लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि उन जोशीले अध्यापकों से तो आखिरकार स्कूल का ही विकास हो रहा है और स्कूल का नाम होने से प्रशंसा के छींटे उनके खाते में भी आएंगे जो कार्य नहीं करते । परन्तु बिना सकारात्मक सोच से भरे प्रशिक्षण के यह संभव नहीं । कुछ अर्ध जोशीले अध्यापक यह कह कर हार मान लेते हैं यह तो 5वीं या 8 वीं कक्षा से ऐसा होता तो सही होता देखिए इस विषय पर सरकार तेजी से विचार कर रही है कुछ स्थानों पर इसी सत्र से हो भी जाएगा परिवर्तन । परन्तु आप अपने स्तर पर उस बच्चे को उठाने का भरपूर प्रयत्न करें । आपके अतिरिक्त प्रयास ही तो बच्चों द्वारा भविष्य में सराहे जाएंगे जो आपके लिए सबसे बड़ी उपलब्धि होगी । अध्यापन को अच्छी तनख्वाह एवम आराम शाही व्यवसाय न समझ कर बल्कि इसे उच्च स्तर की समाज सेवा समझ कर कार्य करें। आपकी अच्छी तनख्वाह आपके ओहदे का सम्मान है और आने वाले अध्यापकों से यह गुजारिश है कि जो अध्यापन को केवल उच्चतम तनख्वाह एवम आराम शाही क्षेत्र समझ कर आना चाहते हैं तो कृपा करके अन्य क्षेत्र में जाएं । याद रखें विरोध भी होगा लेकिन जब परिणाम सामने आएंगे तो छाती गर्व से फूल जाएगी । इस सुधार की आज हर अध्यापक , बच्चे में एवम अभिभावक में अत्यंत आवश्यकता है । नहीं तो अनाड़ी पीढ़ी भविष्य में उच्च पदों पर आकर राज्यों का फिर देश का विनाश करेगी । सभी स्कूल मुखियाओं से भी अपील है कि जोशीले अध्यापकों का साथ दें एवम उनके विरोधियों के बहकावे में आने की बजाए वास्तविक रूप को देखें जिससे स्कूल का नाम होगा तो मुखिया का भी तो नाम होगा। उम्मीद है यह आवाज खण्ड शिक्षा अधिकारी , जिला शिक्षा अधिकारी एवम शिक्षा निदेशकों तक पहुंचेगी एवम वे इन सुधारों पर अति तीव्र गति से ध्यान देंगे जिससे कम से कम आगामी सत्र में परिणाम सकारात्मक मिलेंगे। प्रशिक्षण हेतु एवम सुझाव हेतु हमेशा तैयार हूँ।
कृष्ण मलिक अम्बाला
हरियाणा
शिक्षक एवम लेखक
ksmalik2828@gmail.com