सुधार लूँगा।
मुझे हिन्दी नही आता है।
फिर भी मैं हिन्दी कविता लिखता हूँ।
मैं अपने सोच को व्यक्त करता हूँ।
त्रुटियों को सुधार कर सकता हूँ।
कविता लिख ने की व्याकरण की जरूरत है।
तो,
कबीर अनपढ़ था।
फिर भी विद्वानों से बड़ा था।
कवि को चाहिए सोच।
पढ़ने वालों को मन चाहिए।
मैं विद्वान नही हूँ।
मगर सोच सकता हूँ।
भारत देश मे अनेक भाषा है।
किसी भाषा मे कविता लिख सकते है।
कवि को चाहिए सोच।
अच्छे कवि तब बनजाता है। वे समाज सुधारक हो।
शायद इस कविता में भी त्रुटिया
हो सकता है। सुधार लूँगा।
मगर मेरी सोच में त्रुटिया नही है।
जि. विजय कुमार
हैदराबाद, तेलंगाना।