सुधर जाओ, द्रोणाचार्य
कहीं ऐसा न हो कि ख़ामख़ाह
यहां एक और इंकलाब आए!
अब हमारे गुस्से की लपेट में
यह ज़ुल्मत का सम्राज्य आए!
आख़िर कितना बर्दाश्त करेगा
कोई एकलव्य ऐसी हकमारी!
कह दो जाकर द्रोणाचार्य से
अपनी हरकतों से बाज आए!
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