सुदूर गाँव मे बैठा कोई बुजुर्ग व्यक्ति, और उसका परिवार जो खे
सुदूर गाँव मे बैठा कोई बुजुर्ग व्यक्ति, और उसका परिवार जो खेती बाड़ी करता है बकरियों चराता है, दाल रोटी खा के परिश्रम कर के सो जाता है और अगली सुबह फिर वही दाल या दही रोटी खाकर रोज काम मे लग जाता है,
जो जैसा हो रहा है वैसा होने देता है,
उसे क्या पता आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, टेशला, चंद्रयान, ग्रेविटी
उसे कोई फर्क नही पड़ता कि करोङो और अरबों वर्ष बाद उसके वंशज धरती पर रहेंगे या चांद व अन्य किसी ग्रह पर जाकर बसेरा करेंगे
कुछ लोगो की महत्वाकांक्षाओं की वजह से प्रकृति, पर्यावरण व जमीन पर पड़ रहे दुष्परिणाम के नतीजे का भुक्तभोगी ये सीधे साधे लोग होंगे जो जाने अनजाने में कभी भी प्रकति के नियमो के विरुद्ध नहीं गये और प्रकृति के साथजीवन यापन कर रह हैं
लोगों की महत्वाकांक्षा इतनी ज्यादा है कि वो
घरो और दफ्तरों में ac और कारों से पेट्रोल, डीजल और गैस के दोहन के साथ साथ पर्यावरण को नष्ट कर रहे हैं, पृथ्वी पर प्लास्टिक और अन्य अनावश्यक कचरे का नया हिमालय खड़ा कर रहे हैं।