सुगनी
सुगनी ”
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चिथड़ों में लिपटी हुई गरीबी , फटी एड़ियाँ, फटी वेशभूषा और इर्द-गिर्द भिनभिनाती हुई बहुत सी मक्खियाँ | जाने किस आशा में वो एकटक निहार रही है , बरसात की बूँदों को | शायद संवेदना की हद ने उसे मजबूर कर दिया | बचपन में जब वह अनाथ हुई थी तो कोई नहीं था उसे संभालने वाला | उसने खुद ही संघर्ष करते -करते जीवन के तीन दशक को फतेह कर लिया है | भीगे बदन से अन्तर्मन में भूकम्प का सा एहसास बार-बार उसके शरीर को थर्रा रहा था | तभी कोई आवाज सुन चौंक ऊठी ?? सुगनी, सुगनी !!! वह चिल्ला उठी ….सामने कोई प्रेत सा खड़ा था ! ये सच है या आँखों का धोखा | सोचने ही लगी थी सुगनी ! तभी सन्नाटा सा पसर गया पूरे वातावरण में | कहाँ चले गये थे ?आप मुझे अकेला छोड़कर ! क्यों चले गये ? क्या मेरी कोई चिन्ता नहीं हुई ?….जाने कितने सवालों की झड़ी सी लग गई आज सुगनी के मुँह से……और फूट-फूटकर रोने लगी | कब से वह वीरान सी जिन्दगी में दो पल खुशी के खोज रही थी | आखिर समय ने करवट बदल ही ली ! अंधेरे में जो प्रेत सा नजर आया वह ‘प्रेम’ निकला सुगनी का | वह ‘प्रेम’ जो बचपन में उमड़ा था दोनों के हृदय में और परवाज भरके ना जाने किस दिशा में भटक गया था…..आज वह साक्षात् सामने खड़ा है | जिस प्रेम में सुगनी सुध-बुध खो बैठी थी ,वही आज उसकी याददाश्त का कारण बना | साफ पानी की तरह निथर कर उसका अतीत आइने की तरह सामने खड़ा था |
ये क्या हालत बना रखी है सुगनी ? अशोक ने थर्राई आवाज से पूछा | आपके बिना क्या हालत ! और क्या जिन्दगी ! सुगनी ने प्रत्युत्तर दिया और मिट्टी पर कुछ लिखने लगी | ये क्या ? सुगनी तो चितेरी निकली ! कितना सुन्दर अक्स उकेरा है, सुगनी ने अशोक का ! अरे ! सुगनी ! ये कब सीखा ? अशोक ने गर्व से पूछा | बस ! अभी अभी सीखा है ,पर ! आप कहाँ थे इतने दिन ? बहुत सताया है ना मैंने तुम्हें …अशोक ने रोंधे गले से कहा | पर मेरा कोई दोष नहीं है सुगनी ! जब तुम्हारा जन्मदिन था तो मैं मंदिर में आराधना करने गया था ,कि तभी हनुमान मंदिर के पास ही बड़ा बम विस्फोट हुआ ,जाने कितने मासूम बच्चे और निर्दोष लोग मारे गये और मुझे पता ही नहीं चला कि कब मेरे पास कोई थैला रख दिया गया | मुझे दोषी करार देकर चौदह बरस का कारावास दे दिया , किसी ने एक ना सुनी मेरी…बस ! निर्दोष साबित न कर सका अपने आप को | चलो छोड़ो घर चलो अब ! सुगनी ने मासुमियत के साथ अशोक का हाथ पकड़ते हुए कहा | वे दोनों विरह के पिंजरे से आजाद हो चुके थे …सुगनी ने कैनवास पर चित्र उकेरना शुरू कर दिया था उसी दिन से ! आज उसकी पेंटिंग सात करोड़ में बिकी …अब सुगनी ! दस अनाथ बच्चों को जीवन जीना सिखा रही है और तलाश रही है उनमें अपना खोया बचपन |
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— डॉ०प्रदीप कुमार “दीप”