सुगति छंद “शांति”
सुगति छंद / शुभगति छंद
शांति धारो।
दुःख टारो।।
सदा सुखदा।
हरे विपदा।।
रस-खान है।
सुख पान है।।
यदि शांति है।
नहिँ भ्रांति है।।
कटुता हरे।
मृदुता भरे।।
नित सुहाती।
दिव्य थाती।।
ले सुस्तियाँ।
दे मस्तियाँ।।
सुख-सुप्ति दे।
तन-तृप्ति दे।।
शांति गर है।
सुघड़ घर है।।
रीत अपनी।
ताप हरनी।।
शांति मन की।
खान धन की।।
हर्ष दात्री।
‘नमन’ पात्री।।
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सुगति छंद / शुभगति छंद विधान –
सुगति छंद जो कि शुभगति छंद के नाम से भी जाना जाता है, 7 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत गुरु वर्ण (S) से होना आवश्यक है। यह लौकिक जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। इन 7 मात्राओं का विन्यास पंचकल + गुरु वर्ण (S) है। पंचकल की निम्न संभावनाएँ हैं :-
122
212
221
(2 को 11 में तोड़ सकते हैं, पर अंत सदैव गुरु (S) से होना चाहिए।)
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया