#सुगंधा_की_बकरी
सुगंधा कुछ बडबडाते हुए तेज – तेज कदमों से आंगन पार कर रही थी। उसके एक हाथ में छोटी सी बाल्टी दूसरे में बांस की छोटी सी टोकनी जिसमें रात की बची बासी रोटी और आटे का चोकर था।
तभी दरवाजे से अंदर आते नीलेश ने पूछा “बूढ़ा तो गई ही हो अम्मा दिमाग भी खराब हो गया है क्या? यह … काम करते करते तुमको बड़बडाराने की आदत कहां से पड़ गई ?”
सुंगनधा को ऐसे जान पड़ा मानो किसी ने नंगी बिजली की तार से उसे छू दिया हो। उसने झल्लाहट और चिढ़ में अपनी चाल और वाणी दोनों को गति देते हुए कहा “हां तुम लोग सहर जाकर दू चार किताब पढ़ कर ज्यादा होशियार हो गए हो न … हम क्या जाने होशियारी हम तो गवई गवार लोग तुम लोग ही सब समझते हो जाओ इहां से नहीं तो झगड़ा हो जाएगा ….
नीलेश जो उसके पीछे पीछे चल रहा था आज पूरा का पूरा ठिठोली के मूड में था। गांव के सभी छोटे बड़े उसे पसंद करते थे सुगंधा कुछ ज्यादा ही। निलेश जब भी शहर से गांव आता वह सर्वप्रथम सुगंधा से मिलने जाता … सुगंधा के हाथों नाश्ता पानी करने के बाद ही वो अपने आंगन जाता और वहां लोगों से मिलता था।
इस बार भी उसने ऐसा ही किया लेकिन आते ही देखा सुनंदा किसी बात पर चिधी हुई है खुद अपने आप से बातें कर रही है।
अब तक दोनों घर के पिछवाड़े बने बकरी के छोटे से घर तक पहुंच गए थे वहां सुगंधा ने देखा बकरियां अब तक बंधी है वो और चिढ़ गई… और तेज तेज बोलने लग गई … इस घर में मैं तो नौकरानी हूं, आदमी से जानवर तक का सारा का काम मुझे ही करना है किसी को कोई गरज नहीं मैं जीऊं या मरुं सब को बस काम समय से चाहिए” बोलते हुए भी वो अपने काम को बड़ी सुघड़ता से अंजाम दे रही थी। बकरी के गरदन को सहलाते हुए वहीं नीचे बैठ गई और उसे रात की बची रोटी और चोकर खिलाने लगी…
नीलेश समझ चुका था आज उसकी आजी ज्यादा परेशान है, वो भी नीचे बैठते हुए सुगंधा के गले में पीछे से हाथ डालते हुए बोला “नाराज़ क्यूं होती है आजी… तेरे से अच्छा कोई है क्या ? जो सभी चीजों को इतने अच्छे से करे इसी लिए तो तुझ पे इतना भार है। तू परेशान न हुआ कर तेरी परेशानी मुझ से देखी नहीं जाती”
सुगंधा का गुस्सा मानो मोम की तरह पिघल गया।
सुगंधा दो बार मां बन चुकी थी लेकिन अपनी ममता अपनी ओलाद पे लुटा नहीं पाई थी। एक अजनमा ही चला गया दूसरा जचगी के तीन दिन के अंदर ही।
नीलेश से उसे वो प्यार मिलता जो अपनी ओलाद से पाना चाहती थी।
सुगंधा के शब्दों से अब ममत्व टपक रहा था उसने कहा “छोड़ छोड़े मेरा दम घुट जाएगा … बकरी को बाल्टी से पानी पिलाते हुए बोली “चल तुझे भी कुछ खाने को दूं… कल ही तेरी याद आ रही थी तो गुजिया बनाई थी खोआ वाली तेरे पसंद की”
नीलेश अपनी पकड़ को और मजबूत करते हुए बोला “तू जब कत बताएगी नहीं की किस बात से तू आग हुई जा रही थी, छुरूंगा भी नहीं तुझे जाने भी नहीं दूंगा और खाऊंगा भी नहीं। ऐसे ही सहर वापस चला जाऊंगा”
अब सुगंधा लगभग मनौती करते हुए बोली “लला वैसी कोई बात नहीं चल तू उस बात को छोड़, चल आंगन चलते हैं”
नीलेश और कसते हुए “ना…
सुगंधा अब दुविधा महसूस करते हुए बोली “अच्छा चल पहले कुछ खा पी ले फिर बताऊंगी”
… ना आजी तू गोली दे देगी, खा मेरी सौ…
… अच्छा ठीक है बाबा… कह सुगंधा लगभग हार मानते हुए नीलेश के हाथ को थप थपा दी
दोनों फिर आंगन पार कर एक छोटी सी कोठरी में पहुंचे। जहां करीने से सारा सामान पड़ा था चौकी के बिस्तर जिसपे एक भी सलवट न थी उसे ठीक करते हुए सुगंधा ने कहा “आ लला बैठ जा…
नीलेश बैठते हुए चारो तरफ नजर घुमा कर देखने लगा, फिर थोड़ा छोभ और दुख महसूस हुए बोला “बरसों से इस कमरे को वैसे ही देख रहा हूं, न कुछ घटा है न बढ़ा है…
सुगंधा धीरे मगर जर्द पड़ गए चेहरे को दूसरी ओर घूमाते हुए बोली… “तू देख रहा इस लिए कमी घटी नहीं दिखती … तेरे आने और जाने से मुझे दिखती है…
फिर बात बदलते हुए कहा “तू मेरा पीतल का कान्हा लाने वाला था लाया या फिर …
नीलेश “अरे इस बार फिर भूल गया… कहते हुए जेब से उस ने एक छोटी सी थैली निकाल सुगंधा के हाथों पे रख दिया…
सुगंधा खुशी से रो पड़ी… उसने थैली खोली तो उस में चांदी के कान्हा थे। मानो सुगंधा खुशी से पागल हो गई हो … वो कभी नीलेश को चूमती कभी कान्हा को सहलाती …
तभी नीलेश मानो उसे स्वप्न से जगाते हुए बोला “भूख लगी है … यशोदा मई या कुछ खाने को मिलेगा …
सुगंधा झेपते हुए भगवान को एक पीतल की थाली में रख वहां से सुबह का प्रसाद उठाते हुए बोली … “ले पहले इसे खा ले … कुछ नहीं होता जानती हूं तू नहीं खाएगा छोड़ किसी को मेरे मन की कहां पड़ी …
नीलेश प्रसाद लेते हुए बोला “ला खा लेता हूं तू प्रसाद समझ कर दे मैं मीठा समझ कर खा लूंगा..
सुगंधा खुश हो गई … और मुस्कुराते हुए रसोई की ओर जाते हुए गाना