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1 Dec 2021 · 1 min read

सुख दुख

आईना बन के न मिला करो किसी से
कर्म और धर्म के कर्ता तुम तो नही हो ||

ज्ञान देना सीख देना तो बहुत आसान होगा
निष्कर्ष के फर्ज कहाँ निभा तुम सकोगे ||

वेदना सद्भाव सम्भाव को ये जिन्दगी
कम तो रहेगी ही हमेशा जानते हो तुम ||

इसको कहाँ तक अपने आप से पूरा
कब कर सकोगे पर क्या मानते हो तुम ||

हो सृजन कल्याण कारी कोशिश करी थी
हो गया उल्टा दोष क्या है ? तुम्हारा ||

कर्म के प्रारब्ध का मार्ग अब क्या चुनोगे
समय तो निकलता जा रहा क्या रोक सकोगे ||

आईना बन के न मिला करो किसी से
कर्म और धर्म के कर्ता तुम तो नही हो ||

मासूम सा चेहरा किसी का जब मैं देखता हुँ
मौन को अपने जतन से तब मैं तौलता हुँ ||

अबोधिता मिरी अब काम किसके आयेगी
ज्यादा से ज्यादा जिद करुंगा तो पिस जाएगी ||

अन्याय का दानव मेरी सोच से इतना बड़| है
सोचना भी इस विषय में अरुण कठिन अब लग रहा है ||

आईना बन के न मिला करो किसी से
कर्म और धर्म के कर्ता तुम तो नही हो ||

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