सुख दुख के साथी
पति पत्नी होते हैं सुख दुख के साथी।
सुना है यह हमने भी साथी।
सुख में तो हम भये दोनों साथी।
दुख में क्यों छूट गए हम साथी।
मना की रह गई होगी कमी कहीं मेरे साथ देने में।
पर तुम्हारी तो कोई कमी ही नहीं मेरा साथ देने में।
ऐसा क्यों है बता दे मुझे तु, ओ मेरे साथी।
पति पत्नी होते हैं सुख-दुख के साथी सुना है यह हमने भी साथी।।
तुम्हारे दर्द में मैं अपना दर्द खोज लेती हूं।
पर मेरे दर्द में तुमने अपना सुख क्यों खोज लिया।
बता दे जरा मुझे तु, ओ मेरे साथी।
पति-पत्नी होते हैं सुख-दुख के साथी।
सुन तो यह है हम दोनों ने ही था साथी
जब देखी तुम्हारी तकलीफ मैंने, तो भूल गई मैं गुस्सा अपना।
जब देखी तकलीफ तुमने मेरी, तो फिर लिया क्यों मुंह अपना
तकलीफ तो हम दोनों की एक जैसी ही है
पर भूल क्यों नहीं तुम गुस्सा अपना।
पति पत्नी होते हैं सुख-दुख के साथी।
सुना तो यह हम दोनों ने ही था साथी।
करो जरा तुम याद, जब पड़े थे बीमार ।
बटी थी में कई रूप और आकार में।
कभी बनी मैं डॉक्टर, कभी दायी, कभी मायी,
कभी भाई, कभी सहायी।
मेरा हर एक रूप बन गया था,तुम्हारा ही सेवक।
पर यह चाहत तो नहीं है मेरी।
तुम बनो कभी मेरे सेवक।
बस एक बार प्यार से ही पूछ लेना तुम मुझे,
कैसी हो तुम ओ मेरे साथी।
पति-पत्नी होते हैं सुख-दुख के साथी।
सुना तो यह हम दोनों ने ही था