*** ” सुख दुःख जीवन के पहलू ‘***
।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।
*** सुख दुःख जीवन के पहलू ***
जिस तरह से सिक्के के दो रुप होते हैं उसी तरह से जीवन में भी दो पहलू होते हैं कभी सुख कभी दुःख ये दोनों जीवन में आते जाते रहते हैं यह प्रकृति का नियम चक्र चलता ही रहता है।
वर्तमान जीवन में संचित कर्म या पूर्व जन्म के कर्मों का लेखा जोखा भाग्य में आते हैं जिसके कारण कभी सुख कभी दुःख के रूप में मिलते हैं जो लाख कोशिशों के बाद भी टाला नही जा सकता है।
ईश्वर शक्ति के चमत्कार से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं कोई डिगा नही सकता है ।
गौरव के पिताजी अस्थमा के मरीज थे ठंडी के मौसम में उन्हें कुछ ज्यादा तकलीफ होती थी कुछ दिनों से गले में दर्द होने के कारण इंडोस्कोपी टेस्ट करवाया गया जिसके कारण से खाना पीना सब बन्द हो गया और शरीर कमजोर होने लगा कुछ दिनों तक अर्धचेतन स्थिति में ही रहे उनकी हालत बिगड़ने लगी थी उनकी दयनीय हालत देखते ही नही बनती थी।
घर के सभी रिश्तेदार मिलने आते तो आँखे खोल देखते फिर सो जाते थे कुछ दिनों तक यही हाल रहा फिर ईश्वर की आराधना परिवार वालों की सेवाभाव से कुछ सेहत में सुधार आने लगा।
धीरे – धीरे समय चक्र बदलने लगा ईश्वर के चमत्कारिक प्रभाव एवं स्नेहिल स्पर्श से गौरव के पिताजी कोमा से बाहर आने लगे थे।
गौरव की माँ ने एक दिन पिताजी को उठा कर बैठाया उनकी इच्छा न होने पर भी जबरदस्ती अदरक वाली गर्म चाय पिला दिया ।
एक संकल्प और ईश्वर के करिश्मा से अदरक वाली चाय ने कमाल कर दिया पेट में जाते से ही कुछ असर पड़ा और भूख जागृत हो गई कुछ समय के बाद तरल पदार्थों का सेवन करने लगे थे धीरे धीरे स्थिति सामान्य हो गई अब पुनः शरीर स्वस्थ हो गया था।
गौरव के पिताजी अब मनपसन्द खाने की फ़रमाइश करने लगे थे और घर में छाई उदासी का माहौल खुशियों में तब्दील हो गया था।
प्रकृति का नियम परिवर्तन है जिस तरह मौसम भी परिवर्तित होता है उसी तरह जीवन में भी कुछ अनचाहे घटनाओं के साथ जीवन में कभी खुशियाँ मिलती है और कभी न चाहते हुए भी गमों का सामना करना पड़ता है ।
स्वरचित मौलिक रचना ??
*** शशिकला व्यास ***
#* भोपाल मध्यप्रदेश #*