सुख के क्षणों में हम दिल खोलकर हँस लेते हैं, लोगों से जी भरक
सुख के क्षणों में हम दिल खोलकर हँस लेते हैं, लोगों से जी भरकर बातें कर लेते हैं, पर जैसे जीवन में दुख दस्तक देते हैं हम रोने से बचने लगते हैं जबकि हमारे आँसू बह जाना चाहते हैं हम उनको रोके रखते हैं, रोना मनुष्य का नैसर्गिक गुण होता है।।
यहीं से शुरुआत होती है पीड़ा को पालने की ,हम लोगों को साबित करने में जुट जाते हैं कि हम कितने मजबूत है,खासकर मर्द क्योंकि समाज में मर्दों के लिए उनकी ही पितृसत्तात्मक व्यवस्था ने कह रखा है “मर्द को दर्द नही होता”।।
क्या सच में आपको दर्द नही होता??