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14 Oct 2021 · 1 min read

सुख की छाया

मट मेली सी नींदे आँखों में
कुछ ख़्वाब अधूरे भर गयी
सुख की एक छाया
छूकर मुझे गुजर गयी

जर्झर कस्तियाँ ख़्वाबों की
किनारे आ कर लौट गयी
दिल की उझड़ी इस बस्ती में
बहारें आ कर लौट गयी
चंद कलियाँ ख़्वाबों की
तिनको की तरह बिखर गयी
सुख की एक छाया
छूकर मुझे गुजर गयी

पलको पर अश्क सजाकर
उम्र भर था इंतेजार किया
लौट गयी दरवाजा खटखटा कर
न देहलीज को मेरी पार किया
लम्हें भर को ठहरी खुशियाँ
फिर न जानें वो किधर गयी
सुख की एक छाया
छूकर मुझे गुजर गयी

जो बातों बातों में ये कहते थे
सब रस्म रिवाजों को तोड़ेंगे
ये दुनिया इधर से उधर हो जाए
मगर साथ तुम्हारा ना छोडेंगे
दो चार कदम चलते ही
राहें उनकी भी बदल गयी
सुख की एक छाया
छूकर मुझे गुजर गयी

Language: Hindi
1 Like · 288 Views
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