सुख की खोज
वर्ण पिरामिड:
है
सुख
भीतर
अतिरेक
नहीं कंचन
कस्तूरी सहज
नहीं सुलभ जन।
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सुख को ढूंढत जग रहा
कहीं न मिलता मोल।
उर में जो खोजा गया
मिला बिना किसी मोल।।
कस्तूरी ज्यों खोजता मृग भटके वन माहिं।
त्यों जन सुख खोजते भटक रहे जग माहिं।।
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