लोग
लोग पूछते है, कहा खो जाते हों।
यही बैठे-बैठे,
कहा चले जाते हो
तरह-तरह से सवाल करते है।
सवालों से लहूलुहान करते है।
अब उन्हें कौन समझाए ।
कि, जो वो सोच रहे है।
उस सोच से परे की बात है।
बस बात इतनी सी है ।
कुछ दिनों से जेहन में,
कुछ शब्द अटक गए है।
न वो तुक में आ रहे।
न लय में बैठ रहे।
बस इसी उलझन को
लोगों ने क्या से क्या,
ही समझ लिया हैं।
© अभिषेक पाण्डेय अभि