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23 Jul 2022 · 1 min read

सुखला से सावन के आहत किसान बा।।

सुखला से सावन के आहत किसान बा।।
____________________________________
बगली में ढेबुआ ना हो हो हो हो——
बगली में ढेबुआ ना, डेहरी में धान बा।
सुखला से सावन के आहत किसान बा।।

बीतलऽ आषाढ़ तनि झिसीयो ना गीरल।
लागताटे बीपत आके घरवे में हीरल।
घन घहराइल बाटे,-२ उड़ल मुस्कान बा।
सुखला से सावन के आहत किसान बा।।

आवे ला बाढ कबो खेतवे दहाला।
कबहूँ सुखार देखी सब जरि जाला।
भइल दुसवाँर जियल-२ अधरे में जान बा।
सुखला से सावन के आहत किसान बा।।

इनर देव ना जानी बाड़ें काहे रुसल।
सपना हेराइल जात, चुल्हीये में खुसल।
भगिया लिखाइल खाली-२ दुखवे के खान बा।
सुखला से सावन के आहत किसान बा।।

✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’

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