सुखनवर
आप इश्क में दर्द ए सुखनवर होते रहीए जनाब
ये इश्क जो है न आप के बस का रोग नहीं
~ सिद्धार्थ
गमों की फेहरिस्त लंबी तो न थी
बांटने की मगर नियत ही नहीं थी
~ सिद्धार्थ
रात भर झांकता था चाॅंद खिड़की से मेरे
किसी ने कीलें ठोंक दी खिड़की के सीने में मेरे
~ सिद्धार्थ