सुखद एहसास
रोज की तरह सीमा आज भी रोजमर्रा के काम जल्दी जल्दी निबटाते जा रही थी,और घड़ी की तरफ भी उसका ध्यान था।कही आज फिर उसे ऑफिस के लिए देर न हो जाये।काम निबटा कर हाथ में एक पराठा लपेटकर खाते हुए वह कार्यालय के लिए निकलने लगी,उसकी सासू माँ पीछे से आवाज लगा रही थी,अरे बहु नाश्ता तो करती जा।
उसने यह कहते हुए कि माँ जी देर हो जाएगी,वह निकल पड़ी।
इधर सासू माँ भुनभुना रही थी कि ये नही की आधा घंटा पहले उठ जाए जब जानती है कि ऑफिस जाना है तो 8 बजे उठने से कैसे काम चलेगा।
और उधर सीमा ऑटो में बैठते हुए सोच रही थी कि घर में किसी को उसकी परवाह ही नही है ,सब उसे मशीन समझ रहे हैं।
सासू माँ बस झूठा लाड दिखाती हैं,यह नही की मैं बाहर जाती तो घर का काम ही कर लें,पर नही सास जो हैं छोटी हो जाएंगी।
इस तरह के उधेड़बुन में वह ऑफिस पहुँची और काम निबटाने लगी।
शाम को ऑफिस से निकलते समय उसका सिर भारी हो रहा था,किसी तरह वह घर पहुँची।घर पहुँचते ही उसे बुखार हो गया।सासू माँ जब उसके कमरे में बुखार से धुत पड़े देखा तो बुखार की दवा और चाय बनाकर लाकर दी।
फिर एक दो घंटे बाद जब सीमा को आराम महसूस हुआ तो उसने रसोईघर की ओर रुख किया,तब देखा तो सासू माँ और उसके पति खाना बना रहे थे।
सासू माँ ने कहा कि अरे बेटा क्यों उठ गई आराम करती।
उसके कहने पर भी उन्होंने काम नही करने दिया।
इसी तरह ऑफिस में भी फ़ोन करके छुट्टी दिलवा दी।
जब उसने सासू माँ से कहा कि माँ मेरे कारण आपलोगों को काफी तकलीफ हुई तो उसकी सासू माँ ने कहा कि हाँ तकलीफ तो हुई पर इस बात की नही कि काम नही करना पड़ा,वरन इस बात की कि तुम्हें इतनी तकलीफ हुई।
उस क्षण में जो एहसास हुआ उसको बयां नही कर सकते।
वाकई वह एक सुखद एहसास था।