कहो उस प्रभात से उद्गम तुम्हारा जिसने रचा
सावन भादो
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
शुभ शुभ हो दीपावली, दुख हों सबसे दूर
*बॉस की चिड़िया बैठाना (हास्य व्यंग्य)*
तुम-सम बड़ा फिर कौन जब, तुमको लगे जग खाक है?
आसमां से गिरते सितारे का एक लम्हा मैंने भी चुराया है।
जो हमें क़िस्मत से मिल जाता है
मैं जानता हूॅ॑ उनको और उनके इरादों को
कहतें हैं.. बंधनों के कई रूप होते हैं... सात फेरों का बंधन,
जब याद सताएगी,मुझको तड़पाएगी
Uljhane bahut h , jamane se thak jane ki,
आदमी की संवेदना कहीं खो गई
माँ मुझे जवान कर तू बूढ़ी हो गयी....
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
अब भी वही तेरा इंतजार करते है
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी "