प्रेमागमन / मुसाफ़िर बैठा
उनकी मोहब्बत में सब कुछ भुलाए बैठें हैं
ये अश्क भी बे मौसम बरसात हो गए हैं
खामोशी : काश इसे भी पढ़ लेता....!
आसमां पर घर बनाया है किसी ने।
चंचल मन चित-चोर है , विचलित मन चंडाल।
मारगियां हैं तंग, चालो भायां चेत ने।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
अगर कोई इच्छा हो राहें भी मिल जाती है।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
*रोटी उतनी लीजिए, थाली में श्रीमान (कुंडलिया)*
Don't Give Up..
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
रक्षा बंधन का पावन त्योहार जब आता है,