“सुकून की तलाश”
“सुकून की तलाश”
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मुझे कब से है थोड़े से “सुकून की तलाश”।
जो किंचित् ही है इस जहान में आसपास।।
चाहे जाना पड़े जंगल में या दूर पहाड़ियों पे।
काश वो पल मिलता जो होता कितना ख़ास।।
सुख शांति की पिपासा में हर पल ही रहता ।
अमन,चैन से भरी ज़िंदगी होगी खूब मिठास।।
दौड़ भाग की ज़िंदगी में विकल रहता दिन रात।
ऐसे पल मिल जाते जहाॅं ना होता कभी निराश।।
हर तरफ शोरगुल, व्यस्तताओं में पिस सा गया ।
कोलाहल के बीच तनिक नहीं शांति का आभास।।
सोचता हूॅं किस दिशा में जाऊं,कोई तो मंत्र होगा।
इन सारे प्रश्नों को हल करने का कर लेता प्रयास।।
भक्ति में लीन हो भक्तिमय वातावरण में खो जाऊं।
पर ये हर पल संभव तो नहीं ऐसा ही मेरा विश्वास।।
दूर क्षितिज में ऐसी जगह होती, बिताते कुछ क्षण ।
सुख,शांति,संतोष हो, है ऐसी ही सुकून की तलाश।।
( स्वरचित एवं मौलिक )
© अजित कुमार “कर्ण” ✍️
~ किशनगंज ( बिहार )
दिनांक:- 25 / 04 / 2022.
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