सुकूँ चाहता है
ठिकाना बदलना जो तूँ चाहता है
जमाने से क्या तूँ सुकूँ चाहता है?
जमाना बुरा है तूँ कहता है सबसे
फिर ज़माने से क्यूँ गुफ़्तगू चाहता है
जमाने से क्या तूँ सुकूँ चाहता है?
हो सकता है तेरा ख़यालात बदले
तूँ भी बदल जाए जब हालात बदले
ये तुझे ही पता है बस तूँ ही जाने
इस ज़माने को बदलना क्यूँ तूँ चाहता है
जमाने से क्या तूँ सुकूँ चाहता है?
ये माना के तूँ आला है सबसे
तूने जो खुद को संभाला है कबसे
मिलना है मुश्किल ये तुझे भी पता है
तो आदमी खुद सा क्यों हूबहू चाहता है
जमाने से क्या तूँ सुकूँ चाहता है?
क्या माजरा है ? तूँ बताता नहीं है
वैसे तो कुछ भी छिपाता नहीं है
मैं हैरान हूँ और परेशान हूँ
के माजरे को छिपाना तूँ क्यूँ चाहता है
जमाने से क्या तूँ सुकूँ चाहता है?
-सिद्धार्थ गोरखपुरी