ऐसा हो संसार
मैं चाहूँ की बाघ व बकरी,
एक ही घाट निर्वाह करे।
कलकल बहती माँ भागीरथी,
स्वच्छ जल ही प्रवाह करे।
वन कानन व विटप लताएँ,
धानी हो धरा को प्यार करें,
बनके बसन्त सभी ऋतुएँ,
नाना प्रकार श्रृंगार करें।
जो भी खग कोयल जैसा हो,
कोयल वाणी ही आचार करे,
जो मूक जीव लाचार यहाँ,
उन पर न अत्याचार करें।
मन निर्मल हो गंगा जैसा,
प्रेम दया सदाचार करें।
है जग में पराया कोई नहीं,
सब अपने हैं, प्रचार करें।
हो हर बाला मर्यादा मूरत,
नर में नारायण वास करें,
रवि ज्ञान पुंज किरणों से हम,
अंतर्मन को हो साफ करें।
हर धर्म मानवता खातिर है,
हम क्लेश द्वेष नकार करें।
समझें हर जीव को श्रेष्ठ यहाँ,
ऐसी संस्कृति नवाचार करें।