सुंदर बाग़
इतिहास के पन्नों से “ सुंदर बाग़ ” की भावी किस्मत लिखने चले हैं,
“सबक” न लेकर नन्हें पौधों को नफरत की आग में जलाने चले हैं I
बाग़ की अस्मिता , मान ,सम्मान को कोई सोच भी नहीं रहा,
हर एक पेड़ अपने मान के गरूर में खुद ही उलझता जा रहा ,
हर कोई अपने को बड़ा बताकर दूसरे पेड़ को छोटा कह रहा ,
बाग़ को दरिया में डूबोकर पेड़ अपने में गर्व महसूश कर रहा ,
इतिहास के पन्नों से “ सुंदर बाग़ ” की भावी किस्मत लिखने चले हैं,
“ नवयुग” की ओर न बढ़कर पाषIण युग की इबारत लिखने चले है,
“सुंदर बाग़” की शोभा केवल आम या अमरुद के पेड़ से नहीं बनती ,
जामुन, कटहल, बेर के पेड़ो से बाग़ की खूबसूरत तस्वीर जन्म लेती,
पेड़ क्यों टकराए आपस में ? गुलशन में जग हंसाई का स्वरूप लेती,
सुंदर बाग की धरा पेड़ो की नादानी-नासमझी पर दिन – रात रोती I
इतिहास के पन्नों से “ सुंदर बाग़ ” की भावी किस्मत लिखने चले हैं,
“खूबसूरत चमन” में आग लगाकर इंसानियत का पाठ पढ़ाने चले हैं I
“सुंदर बाग़” को अपनी किस्मत पर रोते हुए हमने कई बार देखा ,
बाग़ को बार-२ गुलामी में जीने का दर्द भी उसकी आँखों में देखा ,
भविष्य के नन्हें पौधों को खाद-पानी के लिए तरसते हुए भी देखा ,
इतिहास के पन्नों से सबक न लेने वालों का अंजाम भी उसने देखा I
इतिहास के पन्नों से “ सुंदर बाग़ ” की भावी किस्मत लिखने चले हैं,
गुलशन के फूलों को रौंदकर बाग़ का सुंदर भविष्य लिखने चलें हैं I
“मालिक की कलम” से सुंदर बाग़ की सच्चाई लिखता चला गया ,
“जहाँ के मालिक” का इंसानियत का पैगाम सभी को बांटता गया ,
पेड़ अपनी जड़ें को खोदे या पौधों को जिंदगी दें,उनपर छोड़ता गया ,
इतिहास के पन्नों से सबक लें या गर्त में डालें उनपर छोड़ता गया ,
पौधा बनकर “राज” मालिक के कदमों की धूल में निखरता गया I
इतिहास के पन्नों से “ सुंदर बाग़ ” की भावी किस्मत लिखने चले हैं,
“सबक” न लेकर नन्हें पौधों को नफरत की आग में जलाने चले हैं I
[ उपरोक्त कविता मेरे भारत के लाखों युवाओं को समर्पित है I ]
देशराज “राज”