सुंदरी सवैया
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सुंदरी सवैया
(8 सगण+ गुरु)
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वर दो स्वर दो वरदायिनि मात खड़े हम टेर रहे तुम द्वारे ।
उर में भर दो कुछ भाव नये नित छंद रचें हम नूतन प्यारे ।।
लय दो गति दो हमको मति दो उर शक्ति भरो न लगे हम हारे ।
अँधियार हटे नव सूर्य उगे नव गीत लिखें निज ज्ञान सहारे ।।
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सरसों जब खेतन में किलकै तब लागत है बिखरौ रँग पीरौ ।
चुनरी अवनी जस ओढ़ रखी मधु ब्यार बहै मन होवत सीरौ ।।
ऋतु मादक अंग अनंग बसै बिनु कंत लगै उर कोउन चीरौ ।
परदेस गयौ बलमा सखि री! न सुहावत लाल न भावत हीरौ ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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