सुलगे कहीं धुँआ तो जलती है आग
सुलगे कहीं धुँआ तो जलती हैं आग
समुद्र के खारे पानी मे बनती है झाग
कौन सुरक्षित है आज नवयुग दौर में
अपने ही डंक मारते बन विशैले नाग
मिलते नहीं सुर आपस में आमजन के
कैसे बजेगा जगत में मधुर संगीत राग
सितारें भी हिचकचाते हैं टिमटमाने में
देख करके काली करतूतों भरी सारंग
जीवन समेकित रंग हुए सीमित बदरंग
कहाँ रहे हैं अब पहले जैसे होली फाग
कहीं उजड़ ना जाए मनु जीवन बगिया
गहरी निंद्रा से अब तुम जाओ उठ जाग
यूँ ही बेफिक्र बढते रहो जीवन पथ पर
मिलेगी मंजिल,खिलेगा चमन फुलबाग
सुलगे कहीं धुँआ तो जलती. है आग
समुद्र के खारे पानी में बनती है झाग
सुखविंद्र सिंह मनसीरत