सीप और मोती
सीप और मोती
मेरा दिल बंद सीप है और सनम तू उसमें है मोती
तेरा मेरा साथ ऐसा है कि जैसे दीपक संग ज्योति।
तू जुल्म करता है मुझपर, दिल मेरा जलता है सितमगर
पर जुल्म भी तेरा हमको तो प्यारा लगता है सितमगर।
ज़रा सोच कि कितनी बूंदें गिरती,ओस की हररोज समंदर में
नहीं मुमकिन कि हर बूंद बनें मोती खारे पानी के अंदर में।
तू सच्चा मोती है और तू सीप में ही अच्छा लगता है दिलबर
इश्क जब तक है सीने में दफन, वो सच्चा लगता है दिलबर।
नीलम शर्मा