#सीधे हैं राहूकेतु
🙏~ किसी ने कहा था कि उर्दू भाषा की सहायता के बिना सिनेप्रेमगीत लिखे ही नहीं जा सकते। तब गीतों में प्रतीक और बिंब भी वो लिए जाने लगे जिनका हमारे जीवन से कहीं कोई मेल न था।
यदि किसी ने इस कथन को झुठलाने का प्रयास किया भी तो उसको हँसी-ठिठोली अथवा उपहास में उड़ा दिया गया। एक ऐसा ही प्रयास था यह गीत :
“प्रिये प्राणेश्वरी हृदयेश्वरी
यदि आप हमें आदेश करें तो
प्रेम का हम श्रीगणेश करें. . .”
इस गीत का छायांकन इस विधि हुआ कि हिंदीजन अपनी भाषा पर लज्जित हों।
अब ?
नीचे प्रस्तुत मेरी सद्यगीतिका “सीधे हैं राहूकेतु. . .” को किसी सिनेगीत की लय पर गाकर परखें। मन मुदित तो मेरी पीठ स्नेहिल स्पर्श मांगती है।~
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★ #सीधे हैं राहूकेतु ★
सीधे हैं राहूकेतु
वक्री हैं शेष सारे
मेरी प्रीत भँवर में उलझी
दूर हटे किनारे
सीधे हैं राहूकेतु . . . . .
झोली में भर ही लूंगा
चंदा की चाँदनी को
मैं उतर गया समर में
सोचे बिना विचारे
सीधे हैं राहूकेतु . . . . .
सब बाएं होके निकले
मेरे दाहिने न कोई
मैं शकुन ही बांच लेता
उसने नयनबाण मारे
सीधे हैं राहूकेतु . . . . .
निजपगों की छब चीह्नता
साजन की वीथियों में
धरती कहाँ छुई थी
मैं उड़ा परों सहारे
सीधे हैं राहूकेतु . . . . .
चढ़ युक्तियों के कांधे
होते सरल सभी पथ
इस घाट के सभी मल्ल
सब उक्तियों के मारे
सीधे हैं राहूकेतु . . . . .
अष्टम हुआ है मंगल
शनि राँधता लगन में
तीनों हैं दृष्टिपथ में
बलविक्रम राजदरबारे
सीधे हैं राहूकेतु . . . . .
शकुनि हुआ समय अब
लेकरके भूतपांसे
मेरे नवें घर का स्वामी
अटका सदनद्वारे
सीधे हैं राहूकेतु . . . . .
कैसा हुआ है कौतुक
खेलें कि खेल देखें
उन्हीं को खोजते हम
जो न हो सके हमारे
सीधे हैं राहूकेतु . . . . .
मैं कहाँ से खोज लाता
लेखों का लिखनेहारा
कविराज तो बहुत थे
ब्रह्माब्रह्माणी सिधारे
सीधे हैं राहूकेतु . . . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२