सीता छंद
सीता छंद
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पाप कर्मों से कभी भी मुक्ति हो पाती नहीं ।
सर्प-सी हो भावना सीधी कभी जाती नहीं ।।
नैन खोले सो रहे हैं स्वप्न देखें जागते ।
देख लो क्यों लोग सारे सत्य से हैं भागते ।।
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गर्भ में क्यो मारते हो जन्म लेने दो इन्हें ।
जिंदगी की नाव को स्वच्छंद खेने दो इन्हें ।।
फूल -सी हैं दो कुलों की ये सदा शोभा बनें ।
सृष्टि की आधार हैं ये सृष्टि पीड़ा सह जनें ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।