सीख…
कुछ सीख एसी होतीं हैं,
जो सीख तक ही,
सीमीत होती हैं.
जब अमल की बारी आये,
न जाने, कहाँ छुपी होती हैं?
जब बात, दूसरों की, हो,
सभी को याद रहतीं हैं,
सब याद रखते हैं,
गली गली दोहराते हैं,
एसे में, सबकी समझ..
न जाने कहाँ छुपी होती है?
जब गलती खुद की हो,
हर गलती माफ होती है,
सीख, सीख ही रह जाती है,
ये कहाँ आसान होती है?