सीख
रूकते संभलते उठते गिरते
सीख लिया हमने चलना
सुख और दुख की लहरों पर
सीख लिया हमने तरना
राह का घनघोर तिमिर भी
रोक सका न राही को
भयभीत ह्रदय के कंपन से ही
सीख लिया आगे बढना
दूर थी मंजिल अनजानी
पंथ भरा था लुटेरों से
उस अनदेखे लक्ष्य की लगन में
सीख लिया मंजिल छूना..