सीखा विवेकानंद से
जो लगे हैं अपने उद्धारों में
न घर ही उनका हुआ न घाट।
करने वालों की हुंकार बहुत
कर देंगे वे इक क्रांति विराट।
बह जाएं बड़े-बड़े दिग्गज भी
क्या छोटे-मोटों की बिसात।
कमर कस लो और बनो कर्मठ
लक्ष्य प्राप्ति ही अंतिम बात।
प्रबल शक्ति है आत्मा की
जड़ की कोई नहीं है शक्ति।
तीनों लोक हैं तेरे पग तले
करो न तुम कर्म से विरक्ति।
निज भुजबल पर करभरोसा
हृदय रखो दृढ़ वज्र समान।
प्रबल इच्छाशक्ति के संग
तुम कर जाओ कार्य महान।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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