अनपढ़ रहो मनोज (दोहा छंद)
वो मेरे बिन बताए सब सुन लेती
इश्क़ कमा कर लाए थे...💐
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
लाया था क्या साथ जो, ले जाऊँगा संग
तेरे चेहरे पर कलियों सी मुस्कुराहट बनाए रखने के लिए।
जिन्दा हूं जीने का शौक रखती हूँ
शायरी - ग़ज़ल - संदीप ठाकुर
विरक्ती
Mrs PUSHPA SHARMA {पुष्पा शर्मा अपराजिता}
ख्याल नहीं थे उम्दा हमारे, इसलिए हालत ऐसी हुई
ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
खुद से बिछड़े बहुत वक्त बीता "अयन"
संसार में कोई किसी का नही, सब अपने ही स्वार्थ के अंधे हैं ।
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
बिखरे सपनों की ताबूत पर, दो कील तुम्हारे और सही।
यूं हाथ खाली थे मेरे, शहर में तेरे आते जाते,
"अनैतिक कृत्य" की ज़िम्मेदारी "नैतिक" कैसे हो सकती है प्रधान