सिसकता गम
कितनी हसरत से मांगी थी दुआ मैंने
न देखूं कभी भी सोगवार तुझे
ये क्या और क्युं हो गया जानाॅं
तेरे रात और दिन में दिखे गम ए दरार मुझे
चलो बीते हुए लम्हों से चुन के लाए हंसी
सिसकता गम मै रख लूं अपने पहलू में
लबों पे खेलती मूस्क की दुआ तुझे दे दूं
~ सिद्धार्थ