*सिवा तेरे सुनो हम-दम हमारा भी नहीं*
सिवा तेरे सुनो हम-दम हमारा भी नहीं
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मुझे कोई मिला अपना सहारा ही नहीं,
सिवा तेरे सुनो हम दम हमारा ही नहीं।
कहूँ कैसे न कोई आप सा आया नहीं,
चले हम छोड़ दर तेरा,पुकारा ही नहीं।
किया है प्रेम बढ़-चढ़कर,नहीं कोई वफ़ा,
मिली जो प्यार में नफरत गवारा ही नहीं।
नहीं काबिज हुआ दिल में,अकेले ही रहे,
डगर मेरी मिला तुम सा दुलारा ही नहीं।
नशीले नैन कातिल वार करते हर समय,
नशा छाया रहे तन-मन गुजारा ही नहीं।
न मनसीरत मिला,जग में,रहीं राहें जुदा,
नदी सा साथ प्यारा है किनारा ही नहीं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)