सिलसिला ए इश्क
नज़रों की नज़ाकत,
मुहब्बत में नसीहत।
हमीं से शिकवा,
हमीं से शिकायत ।
जनाब सिलसिला ए इश्क है,
ये चलता रहेगा।।
वो लवों की घुटन,
तनहाईयों का आलम ।
मेरी बेबाक मेहबूबा,
जाने किस किस का दामन ।
जनाब सिलसिला ए इश्क है,
ये चलता रहेगा ।।
गुस्ताखियो की तलब,
वो पलकें झुकाना।
नाफरमानी यो का तांता,
और बातें बनाना ।
जनाब सिलसिला ए इश्क है,
ये चलता रहेगा।।
गैरों से दिल्लगी,
जहां दिल ही नहीं लगी।
जाने क्यूं तुम्हारी जुस्तजू,
गमे दिल को भाने लगी ।
जनाब सिलसिला ए इश्क है,।
ये चलता रहेगा।।
उस भटुरे जैसे में क्या था,
शौहर बना फिरता है ।
एक हम थे जैसे तैसे खरे,।
उठते गिरते रहते है।
जनाब सिलसिला ए इश्क है,
ये चलता रहेगा।।
स्वरचित: सुशील कुमार सिंह”प्रभात”