सिर के बाल सफेद
******* सिर के बाल सफेद ******
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यूँ ही नहीं हुए हैं सिर के बाल सफेद
मुकाम हासिल करने में बहाया स्वेद
दिन रात चला हूँ कंटीली राहों पर
तब कहीं जाके खुले सफलता के भेद
बहुत बार रास्ता रोका है हवाओं ने
गंतव्य तक पहुंचे है बाधाएं भेद
तन की झुर्रियों से अंदाजा लगाइये
कितने सावन बिताए जिसके ना खेद
यूँ ही नहीं बैंठें हैं फर्श से अर्श पर
छलनी से भी ज्यादा हैं वस्त्रों में छेद
मनसीरत याद कर लम्हें होता भावुक
जवानी के दिन वारे,पढ़ कर चारों वेद
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)