ग़ज़ल – दिल लगाने के एवज में..
सब कुछ भुला दी मैंने , तुझे पाने के एवज में.
सिर्फ रुसवाई ही मिली,दिल लगाने के एवज में,
नज़र लग गयी ज़माने की मेरी मुहब्बत पे,
तोहफे में मिला फ़ासला,पास आने के एवज में.
तन्हा सिसकती रही उम्मीदे, बेआबरू हो कर,
मेरी आँखों को मिला अश्क,हँसाने के एवज में.
समंदर के सफ़र में तन्हा लड़ता रहा तूफानों से,
डूब गयी मेरी कश्ती, तुझे बचाने के एवज में.
मेरी मुन्तजिर नज़रों की खामोशिया गवाह है.
खुद को मिटा दी,रस्मे-वफ़ा निभाने के एवज में.
– नूरैन अन्सारी