— सिर्फ मतलब की दुनिआ —
मतलब तक ही सीमित
क्यूँ रहता है हर आदमी
वक्त के साथ शायद
बदलता देखा है आदमी
जेब गर्म हों तो रिश्ते भी
सब के नरम ही रहते हैं
जहाँ कमजोर पड़ी जेब
एक एक कर सब निकल जाते हैं
अगर जरुरत पड़ी आपको
तो सब हाथ पीछे ले जाते हैं
वैसे आपको देखते हैं
जुबान से रिश्ते निभाते हैं
वकत इंसान को सब सीखा जाता है
कभी कभी पराया भी काम आ जाता है
क्या करना उन रिश्तो के साथ का
जिन पर भरोसा रखा ,वो साथ छोड़ जाता है
अजीत कुमार तलवार
मेरठ